Wednesday, December 30, 2009

" पापा कब आओगे ?"

( 9 अगस्त 2009 मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन था क्योंकि उस दिन मैंने अपने पापा को हमेशा के लिए खो दिया ! पापा अब कभी नहीं आयेंगे लेकिन फिर भी मुझे हमेशा पापा का इंतज़ार रहेगा ! शायद ये इंतज़ार कभी ख़त्म नहीं होगा ! )

“ पापा कब आओगे ? “

पापा कब आओगे ?
जाने कब से ढूंढ रही हूँ
अपनों में और सपनों में ,
इन पलकों की छाँव तले
क्या एक झलक ना दिखलाओगे ?
सच बोलो ना पापा मुझसे ,
पापा कब आओगे ?

आपको याद करके माँ
हर दिन है रोया करती ,
आपकी यादों में वो
हर पल है खोया करती ,
यादों के इन झरोंखों से बाहर
क्या आप कभी ना आओगे ?
सच बोलो ना पापा मुझसे ,
पापा कब आओगे ?

आपके बिना सूना है घर-आँगन ,
आपके बिना सूना है ये जीवन ,
क्या अपनी आवाज़ इस घर-आँगन में
फिर से नहीं सुनाओगे ?
सच बोलो ना पापा मुझसे ,
पापा कब आओगे ?

क्या रूठे हो पापा मुझसे
या खुशियाँ हमसे रूठ गई है ,
इन रूठी खुशियों को क्या
फिर से नहीं मनाओगे ?
सच बोलो ना पापा मुझसे ,
पापा कब आओगे ?

जानती हूँ जीवन की इस सच्चाई को
कि आप कभी ना आओगे ,
फिर भी आँखों में छिपे इस इंतज़ार को
क्या कभी ना ख़त्म करवाओगे ?
सच बोलो ना पापा मुझसे ,
पापा कब आओगे ?

पापा आप कब आओगे ?

- सोनल पंवार

Monday, August 3, 2009

' सूनी कलाई '

" सूनी कलाई "

एक हसरत थी
कि मेरा एक भाई होता ,
जिसकी सूनी कलाई में
मेरा प्यार होता !
लेकिन हसरत
दिल की दिल में रह गई ,
उसकी सूनी कलाई भी
सूनी रह गई !

- सोनल पंवार

' सोनपरी और मुस्कान ' (A Fairytale)

” सोनपरी और मुस्कान ” (बाल कविता )

दूर कहीं एक गाँव में
रहती थी ‘ मुस्कान ‘ ,
माँ की थी वो राजदुलारी ,
और पिता की थी वो जान !
चिडियां-सी चहकती ,
फूलों-सी महकती ,
चेहरे पे उसके
सदा रहती थी मुस्कान !
दादी से अपनी वो
सुनती थी परियों की कहानियां !
नेकी और ईमानदारी का पाठ
सिखाती थी वो कहानियां !
ख्वाबों को हकीक़त के आशियाने से
सजाकर लुभाती वो कहानियां !
सुनकर परियों के देश की
वो अनगिनत कहानियां ,
नेकी और ख़ुशी मुस्कान की
बन गई थी पहचान !
कहानी सुनकर परियों की
सोचा करती थी मुस्कान ,
कि नेक राह पर जो है चलते ,
क्या परी उन्हें देती है उपहार ?
एक दिन यूँ ही सोचते हुए
एक घने जंगल में पहुंची मुस्कान ,
जहाँ था केवल सन्नाटा ,
और वहीँ पर था एक वृक्ष विशाल !
उसी वृक्ष कि टहनी से ऊपर
बनी हुई थी सीढियां कुछ ख़ास ,
जिन पर चलकर मुस्कान
पहुँची एक सुनहरे दरवाज़े के पास !
खुला जब वो दरवाज़ा ,
तब वो रह गई थी हैरान ,
दरवाज़े के उस पार
था परियों का देश ऐसा ,
रंग-बिरंगी थी वहां कि दुनिया ,
टिमटिमाते तारों-सी दुनिया !
न देखी, न सुनी थी कभी ,
ऐसी परियों-सी सुंदर वो दुनिया !
कलकल बहते हुए झरने ,
झरनों में खेलती वो नन्ही परियां ,
चोकलेट और आइसक्रीम से लदे पेड़ ,
रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियां !
परियों की इस दुनिया में ,
जाने कब खो गई मुस्कान !
तभी वहां परियों की राजकुमारी
‘ सोनपरी ‘ आई ,
मुस्कान को देख पहले वो मुस्कुराई ,
फिर पास आकर उसे
उपहारों की गठरी थमाई !
जब मुस्कान ने सोनपरी से
कारण था जानना चाहा,
तब सोनपरी ने बतलाया ,
जो करते है नेक काम ,
उन्हें मिलता है ये उपहार !
उपहार लेकर सोनपरी से ,
नींद से जाग उठी मुस्कान !
आँखे खुली मुस्कान की
तो माँ का दिया उपहार अपने पास पाया !
सपनों में जो थी सोनपरी ,
आँख खुलने पर उसने अपनी माँ को पाया !

– सोनल पंवार

Saturday, July 25, 2009

' गीत '

“ गीत ”

ज़िंदगी एक गीत है ,
इसे प्यार से गुनगुना लो !
ग़मों के बादल भी छाए ,
तो ज़रा-सा मुस्कुरा लो !
साँसों की सरगम पे ,
एक नया गीत तुम बना लो !
अगर तुम्हें मिले न प्रीत कोई ,
तो इसे तुम मन का मीत बना लो !
ज़िंदगी के कोरे पन्नों पर ,
एक मधुर संगीत सजा लो !
आशा की किरणें बरसा कर ,
इसे तुम रोशनी से जगमगा लो !
अपने दामन में तुम ,
खुशियों का चमन बसा लो !
बेशकीमती है ये ज़िंदगी ,
इसे तुम गीतों से सजा लो !

- सोनल पंवार

Thursday, July 23, 2009

' माता-पिता'

[ “माता-पिता” कविता मेरी वो पहली कविता है , जिसे मैंने अपने पापा-मम्मी को उनकी marriage anniversary पर तोहफे के रूप में दी थी !आशा करती हूँ कि आप सभी को मेरी यह कविता अच्छी लगेगी ! ]

” माता-पिता ”

माता-पिता ,
ईश्वर की वो सौगात है ,
जो हमारे जीवन की अमृतधार है !
आपसे ही हमारी एक पहचान है ,
वरना हम तो इस दुनिया से अनजान थे !
आपके आदर्शों पर चलकर ही ,
हर मुश्किल का डटकर सामना करना सीखा है हमने !
आपने ही तो इस जीवन की दहलीज़ पर हमें ,
अंगुली थामे चलना और आगे बढ़ना सिखाया है ,
वरना एक कदम भी न चल पाने से हम हैरान थे !
आपके प्यार और विश्वास ने काबिल बनाया है हमें ,
जीवन के हर मोड पर आज़माया है हमें ,
वरना हम तो जीवन की कसौटियों से परेशान थे !
आपने हमेशा हर कदम पर सही राह दिखायी है हमें ,
अच्छे और बुरे की पहचान करायी है हमें !
आपने दिया है जीवन का ये नायाब तोहफा हमें ,
जिसे भुला पाना भी हमारे लिए मुश्किल है !
आपकी परवरिश ने ही दी है नेक राह हमें ,
वरना हम तो इस नेक राह के काबिल न थे !
आपसे ही हमारे जीवन की शुरुआत है ,
आपसे ही हमारी खुशियाँ और आबाद है ,
आप ही हमारे जीवन का आधार है ,
आप से हैं हम ,
और आप से ही ये सारा जहांन है !

- सोनल पंवार
(spsenoritasp@gmail.com)
(http://princhhi.blogspot.com)

Tuesday, July 14, 2009

' सावन '

' सावन '

बारिश कि बूंदों से ,
भीगा हुआ सावन है आया !
कलियों के चेहरों पर ,
खिलता हुआ यौवन है छाया !
नदियों और तालाबों में ,
उमंगों से भरा जीवन है आया !
घनघोर घटाएँ ऐसी है बरसी ,
इठलाता हुआ सावन है आया !
धरती की प्यास बुझाकर ,
ऐसा निर्मल जल है आया !
मेघों ने मल्हार जो छेडी ,
तो झूम-झूम कर सावन है आया !
बारिश की बूंदों से ,
भीगा हुआ सावन है आया !

- सोनल पंवार

( spsenoritasp@gmail.com )

( http://princhhi.blogspot.com )

Monday, July 13, 2009

' FATHER '

‘FATHER‘

F means that the First person who gives us million things.
A means Anxious for us.
T means that he Teaches us a lesson of truth & honesty.
H means that he Has good ideals.
E means that he Exhort us to make our good life.
R means Right & right he is always be.
Compile all these words and they will make
FATHER
A word that means love, blessings , ideals , sacrifice & devotion to us.

- Sonal Panwar

माँ का दिल

“ माँ का दिल “

माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?
कोमल-सी ममता
या प्यार का एक दरिया ,
ममता की छाँव
या प्यारी-सी एक दुनिया ,
स्नेह का भंडार
या एक मृदुल संसार ,
भोली-सी सूरत
या प्यार की एक मूरत ,
क्षमा का दर्पण
या फिर भगवान का एक वरदान !
माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?

– सोनल पंवार

Sunday, July 12, 2009

ज्ञानोदय

ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तब जाति, धर्म, ऊंच-नीच इन सबसे परे उस ईश्वर ने एक मनुष्य को उसका अस्तित्त्व दिया ! ये जाति, धर्म सब कुछ हमने बनाये है ! इसलिए मेरा ये मानना है कि केवल जप, चिंतन, ध्यान या साधना से ज्ञानोदय सम्भव नहीं है ! सही मायने में हमें ज्ञानोदय की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम आपस के राग-द्वेष, भेदभाव आदि को भूलकर ‘हम’ की भावना के साथ आगे बढ़े और एक सच्चे इंसान होने का आत्मबोध हमें सही राह दिखाएं ! तभी उस ईश्वर के आशीष से हमारा ज्ञानोदय सम्भव है ! यही मेरी इस कविता का आशय है !

” ज्ञानोदय “


जब आशा के दीप-सा प्रज्ज्वलित हो नया सवेरा ,
आतंक की काली छाया का न हो अनमिट अँधेरा ,
जीवन में हो सुख-दुःख के संगम का बसेरा ,
यहाँ मानव का मानव के प्रति प्यार हो गहरा ,
भ्रष्टाचार की नीति का अंत हो घनेरा ,
राग-द्वेष से उन्मुक्त हो मन और झूठ से चेहरा ,
बुराई पर हो अच्छाई की जीत का सेहरा ,
क्रिसमस, ईद, होली हो या हो दशहरा ,
हर त्यौहार में हो चारों तरफ खुशियों का डेरा ,
इंसानियत की यहाँ बहती हो निर्मल धारा ,
इस आत्मबोध से प्रकाशित हो जन संसार ये सारा ,
तब होगा सच्चा ज्ञानोदय ,
और मिलेगा ईश्वर का सानिध्य गहरा ,
उदीयमान होगा ये जीवन प्रखर ज्योति पुंज-सा ,
और बनेगा ये कल स्वर्णिम सुनहरा !

- सोनल पंवार

Friday, July 10, 2009

' स्वर्ग '

' स्वर्ग '

गर आसमां मुझे मिल जाए ,
तो इस जहाँ को मैं तारों से रोशन कर दूँ !
गर धरा मुझे मिल जाए ,
तो इस बंजर धरा को मैं गुलज़ार कर दूँ !
गर सागर की गहराई मुझे मिल जाए ,
तो मानव का मानव के प्रति प्यार गहरा कर दूँ !
गर पंछी की उड़ान मुझे मिल जाए ,
तो इस समाज को दासता की बेडियों से आज़ाद कर दूँ !
गर बरसात की फुहार मुझे मिल जाए ,
तो इस दुनिया में खुशियों की बौछार कर दूँ !
गर बर्फ की शीतलता मुझे मिल जाए ,
तो इस मानव मन को मैं शीतल कर दूँ !
गर ईश्वर की भक्ति मुझे मिल जाए ,
तो इस ब्रह्माण्ड को मैं भक्ति से पावन कर दूँ !
गर भगवान मुझे मिल जाए ,
तो इस धरती को मैं स्वर्ग-सी आबाद कर दूँ !

-सोनल पंवार

Wednesday, July 8, 2009

' प्रिंछी ' एक परी की कहानी

‘ प्रिंछी ‘ एक परी की कहानी

परियों की थी एक शहज़ादी ,
नाम था उसका ‘ प्रिंछी ‘ !
खुशियों का था आशियाना उसका ,
ग़मों से थी वो अनजानी !
खिलते फूलों-सी मुस्कान थी उसकी ,
महकती थी जिससे बगिया सुहानी !
हँसते-खेलते बीत रही थी उसकी ,
खुशियों से भरी ज़िंदगानी !

एक दिन अनजाने में ’ प्रिंछी ‘ ,
आसमां से इस धरती पर आई !
देख इस दुनिया की खुबसूरती ,
पहले तो वो अति हर्षाई ,
पर देख इंसान की दशा ,
उस परी की आँख भर आई !
भूखे-बेबस लोगों की
तृष्णा उसे रास ना आई !
दुःख से अनजान उस परी के मन में ,
एकदम मायूसी छाई !
उसने सोचा -
ये कैसी है दुनिया ,
जहाँ ऊंच-नीच की है खाई !
रिश्तों की उधेड़बुन में ,
यहाँ लड़ते है भाई-भाई !
ईर्ष्या-द्वेष की भावना यहाँ ,
इंसान के मन में है समाई !
धर्मं और मज़हब के नाम पर ,
यहाँ होती है बस लडाई !
मासूम गरीब बच्चों ने यहाँ ,
उतरन में हर खुशी है पाई !
ज़िन्दगी की हर खुशी पर इनकी ,
ग़मों की परछाई है छाई !
ये कैसी है दुनिया ,
ये कैसे है लोग ,
कैसी है ये पीर पराई ,
देख इस दुनिया की हालत ,
‘ प्रिंछी ‘ कुछ समझ ना पाई !

जब इंसानों की इस दुनिया से ,
परियों के देश वो लौट आई !
तब केवल एक ही बात ,
उसके मन में है आई !
काश, इंसानों की दुनिया भी ,
हम परियों-सी होती !
न होता ऊंच-नीच का भेद ,
न होता कोई जातिवाद ,
न होती भूख और बेबसी ,
न होता कोई विकार !
मर्म देख इस दुनिया का ,
उस नन्ही परी की आँख भर आई !
जो अब तक थी ग़मों से अनजानी ,
वो आज उसकी परिभाषा है जान पाई !

– सोनल पंवार

Friday, July 3, 2009

' बचपन की वो मीठी यादें '

“बचपन की वो मीठी यादें“

बचपन की वो मीठी यादें ,
वो नन्हीं-सी अठखेलियां ,
याद आती है बहुत ,
वो भोली-सी नादानियां !

वो माँ का आँचल और

पापा की अंगुली थामें ,
चलना, गिरना और फिर संभलना !
वो नन्हीं हथेलियों से अपने चेहरे को छुपाना ,
फिर उन्हीं हथेलियों से झांक कर मुस्कुराना !
वो टिमटिमाते तारों को पकड़ने की आस में
आसमान को एकटक यूँ ही तकते रहना ,
और न पाकर उन्हें मायूस-सा हो जाना !
वो नन्हें हाथों से मिट्टी का घरोंदा बनाना ,
और लहरों का उसे अपने संग बहा ले जाना ,
लेकिन फिर भी मिट्टी के नए घरोंदे बनाना !
वो बारिश की फुहारों से ख़ुद को भिगोना ,
और घर आकर माँ की डांट खाना ,
लेकिन अगले ही पल एक प्यारी-सी मुस्कान पर ,
माँ के गुस्से का गायब हो जाना !
वो नए-नए खिलौने लाना और
अपनी गुड़िया से बातें करना ,
वो आइसक्रीम और चॉकलेट की
अपने बड़ों से सिफारिश करना ,
वो इन्द्रधनुषी रंगों से
अपने घर की दीवारों को सजाना ,
वो तुतलाती हुई आवाज़ में
नई - नई कवितायें सुनाना ,
और सवालों की लम्बी लड़ियों में
सबको यूँ ही उलझाना !
वो भोली-सी सूरत बनाकर
अपनी हर ज़िद मनवाना !
वो मासूम निगाहों से
अनकही बात बताना !

बचपन की वो मीठी यादें ,

वो बीता हर लम्हा ,
याद आता है बहुत ,
जब होती हूँ तनहा !

काश, लौट आए बचपन के वो दिन ,

और भर दें मन में जीने की वही उमंग ,
ना कोई चिंता हो , ना कोई शिकन ,
जिंदगी में हो बस खुशियों की तरंग !

बचपन की वो मीठी यादें ……।


– सोनल पंवार

Sunday, June 21, 2009

पापा का प्यार

सूर्य की किरणों-सा प्रकीर्णित ,
पावन धरती-सा सशक्त ,
बहते पानी-सा निर्मल ,
माँ की ममता-सा कोमल ,
मंदिर में बसे ईश्वर-सा दानी ,
खुशियों से भरे मन-सा धानी ,
सीपी में मोती-सा अनमोल ,
गागर में सागर-सा अपार ,
कभी है सख्त, कभी है संदल ,
हमारे लिए हमारे ' पापा ' का प्यार !

- सोनल पंवार

Friday, June 19, 2009

' पिता '

फूलों का खिलना , खिलकर महकना ,
हवाओं का चलना , फिज़ाओं का रंग बदलना ,
चिड़ियों का चहकना , भंवरों का गुनगुनाना ,
सागर की लहरों का हवाओं के साथ हिलोरें खाना ,
जैसे ये सब देन है इस सृष्टि के परमपिता की ,
वैसे ही हमारी ज़िन्दगी , ज़िन्दगी का हर एक पल ,
हमारी खुशियाँ , हमारी मुस्कुराहट ,
ये सब देन है उस ' पिता ' की ,
जिसे रचा है सृष्टि के रचयिता 'परमपिता ' ने !

- सोनल पंवार

Sunday, May 24, 2009

FOR MY FATHER

बहती नदिया की धारा को जैसे

अपने भीतर समाया है सागर ने ,

अपनों के प्यार और सम्मान को वैसे

अपने भीतर संजोया है आपने !

आपके आदर्शों की परछाई तले

पले-बढे है हम सभी ,

इन आदर्शों को साथ लिए

जीवन जीना सिखाया है आपने !

आसमान की तरह ऊंची है

आपके व्यक्तित्व की ऊँचाई ,

अपने सद्गुणों से इस व्यक्तित्व को

और भी गरिमामय बनाया है आपने !

कहते है ” धरती पर रूप माता-पिता का

पहचान है उस विधाता की ” ,

लेकिन इन कोरी पंक्तियों को

जीवन का यथार्थ बनाया है आपने !

- सोनल पंवार

Sunday, May 10, 2009

Maa

Happy Mother’s Day
माँ ,

एक शब्द ,
छिपा है जिसमे ,
एक अनोखा संसार !

माँ ,
एक शब्द ,
आँचल में जिसकी ,
सुकून है सारे जहाँ का !

माँ ,
एक शब्द ,
गहराई है जिसकी ,
अथाह सागर के समान !

माँ ,
एक शब्द ,
सबसे है न्यारा ,
सबसे प्यारा ये शब्द !

- सोनल पंवार

Thursday, April 30, 2009

मेरे सपनों का भारत

‘ मेरे सपनों का भारत ‘
मेरे सपनों का भारत है ऐसा ,
सारे जहाँ से न्यारा न है कोई इस जैसा !
गीता, कुरान, गुरुग्रंथ या बाइबिल हो ,
सभी ग्रंथों का यहाँ आदर समान हो !
राम, रहीम, गुरुनानक या ईसा हो ,
सभी धर्मों का एक ही धर्मगुरु हो !
ऊंच-नीच का भेद न हो कोई ,
न निर्धन न धनवान हो कोई !
समता व भाईचारे की यहाँ बहती निर्मल धार हो ,
इस देश के लोगों का एक समान अधिकार हो !
देश की नींव टिकी हो युवाशक्ति के कंधों पर ,
इस नींव की मज़बूती हो आत्मशक्ति के बल पर !
भारत की उन्नति के नित नए द्वार खुलते रहें ,
नवयुवक इस लक्ष्य को लिए इसी जोश में बढ़ते रहें !
विश्व में भारत की एक अलग पहचान बने ,
सर्वधर्मसद्भाव ही इस देश का आधार बने !
भारत की सभ्यता व संस्कृति का सानी नहीं कोई ,
विश्व के इतिहास में ऐसा स्वाभिमानी नहीं कोई !
वतन की सरज़मीं पर हुए शहीदों का बलिदान न व्यर्थ हो ,
उनकी कुर्बानी को याद कर युवाओं में देशभक्ति का संचार हो !
देश के नवयुवक जाग्रत हो देश का ऊँचा नाम कराएं ,
विश्व के मंच पर मिसाल बन भारत को महाशक्ति बनाएं !
मेरा सपना है कि भारत एक दिन विकसित देशों कि श्रेणी में आए ,
और एक बार फिर से सोने कि चिडियां कहलाए !

- सोनल * पंवार

Tuesday, April 21, 2009

विदाई

" विदाई "
क्या सुनाऊ मैं तुम्हें ये दास्ताँ अपनी ,

यह है मेरी जुबानी एक कहानी अपनी !
मैं एक कली थी ,
जो एक बाग़ में खिली थी !
मेरे चेहरे पर एक अधखिली मुस्कान थी ,
जिसकी गवाह ये धरती और ये फिजां थी !
बाग़ के माली ने बड़े प्यार से संवारा था मुझे ,
आंधी और तूफानों में संभाला था मुझे !
पल्लवन के बाद जब मैं फूल थी बनी ,
माली के चेहरे पर एक मुस्कान थी भली !
मेरा खिलना माली के प्रयासों का फल था ,
कुसुमित हुआ मेरा चेहरा , ये क्या कम था ?
लेकिन एक दिन वक्त की आंधी ने मेरे जीवन को ऐसा झकझोरा ,
मेरी कोमल-सी पंखुडियों को एक ही पल में बिखेरा !
वह दिन था मेरे जीवन का अन्तिम क्षण ,
जिसने छीन लिया मेरी उस मृदुल मुस्कान को !
उस दिन माली की आंखों में ऐसा मर्म था छाया ,
जैसे एक पिता ने अपनी बेटी को डोली में था बिठाया !
वह दिन था माली का कली से जुदाई का ,
वह दिन था एक कली की विदाई का !

- सोनल पंवार

Monday, April 20, 2009

" माँ एक अनमोल सौगात "

” माँ एक अनमोल सौगात ”

मेरे जीवन के बिखरे मोती की माला है माँ ,
मेरी आंखों के दर्पण की निर्मल ज्योति है माँ ,
तपती धूप में ममता की शीतल छाँव है माँ ,
दुःख के कटु क्षणों में एक मधुर मुस्कान है माँ ,
मेरे जीवन के इस गागर में प्यार का सागर है माँ ,
पिता है अगर नींव तो प्यार का संबल है माँ ,
त्याग और प्यार की सच्ची मूरत है माँ ,
इस दुनिया में भगवान की सबसे अनमोल सौगात है माँ !

- सोनल पंवार

Saturday, April 18, 2009

".......आतंकवाद क्यूँ .......?"

”……आतंकवाद क्यूँ ……? “
है आतंक-ही-आतंक फैला इस जहान में ,
है दर्द-ही-दर्द फैला इस जहान में !
आतंक जो फैला रहा वो भी एक इंसान है ,
आतंक के साए में जो पल रहा वो भी एक इंसान है ,
तो एक इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
कतरा-कतरा खून का है बिखरा हुआ यहाँ ,
हर शहर हादसों का शिकार हुआ यहाँ ,
आज़ाद हुआ ये देश आतंक का गुलाम क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
यहाँ मन्दिर,मस्जिद,गिरिजाघर और गुरुद्वारे में ,
चैन और अमन का पाठ पढ़ाती गीता,कुरान,बाइबिल है ,
तो धर्म और मज़हब के नाम पर उठती ये दीवार क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
आतंक की लपटों से दहला है ये जनजीवन सारा ,
आतंक के जलजले से बिखरा जग-संसार सारा ,
अपने ही वतन में हर वक्त इन आंखों में खौफ क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
लहू का है एक ही रंग हर इंसान का यहाँ ,
दर्द का एहसास है एक हर इंसान का यहाँ ,
तो अलग-अलग धर्मों में बंटता हर इंसान क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
आज़ादी की राह में न जाने कितने शहीद हुए ,
आतंक को मिटाने की कोशिश में कितने ही कुर्बान हुए ,
आज़ाद वतन की सरजमीं पर अब भी लाशों के ढेर क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
इस एक सवाल पर कई और सवाल है खड़े ,
इस जवाब की तलाश में कई नेता है अड़े ,
फिर भी हर जवाब उलझन से भरा क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
मेरे इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?…….
- सोनल पंवार

Sunday, March 8, 2009

" बेटियां "

HAPPY WOMAN’S DAY
” बेटियां “
कोमल-सी टहनी होती है किसी वृक्ष की ,

मगर इरादा तने-सा सख्त रखती है बेटियां !
मुस्कुराहट से अपनी महकाती है घर को ,
ऐसी प्यार भरी पाती होती है बेटियां !
ख़ुशी और गम का हर रिश्ता निभाती है वो ,
रिश्तों को एक माला में पिरोती है बेटियां !
आज भी बेटी को बोझ समझते है कुछ लोग ,
लेकिन बेटों से कम नहीं होती है बेटियां !