Thursday, April 30, 2009

मेरे सपनों का भारत

‘ मेरे सपनों का भारत ‘
मेरे सपनों का भारत है ऐसा ,
सारे जहाँ से न्यारा न है कोई इस जैसा !
गीता, कुरान, गुरुग्रंथ या बाइबिल हो ,
सभी ग्रंथों का यहाँ आदर समान हो !
राम, रहीम, गुरुनानक या ईसा हो ,
सभी धर्मों का एक ही धर्मगुरु हो !
ऊंच-नीच का भेद न हो कोई ,
न निर्धन न धनवान हो कोई !
समता व भाईचारे की यहाँ बहती निर्मल धार हो ,
इस देश के लोगों का एक समान अधिकार हो !
देश की नींव टिकी हो युवाशक्ति के कंधों पर ,
इस नींव की मज़बूती हो आत्मशक्ति के बल पर !
भारत की उन्नति के नित नए द्वार खुलते रहें ,
नवयुवक इस लक्ष्य को लिए इसी जोश में बढ़ते रहें !
विश्व में भारत की एक अलग पहचान बने ,
सर्वधर्मसद्भाव ही इस देश का आधार बने !
भारत की सभ्यता व संस्कृति का सानी नहीं कोई ,
विश्व के इतिहास में ऐसा स्वाभिमानी नहीं कोई !
वतन की सरज़मीं पर हुए शहीदों का बलिदान न व्यर्थ हो ,
उनकी कुर्बानी को याद कर युवाओं में देशभक्ति का संचार हो !
देश के नवयुवक जाग्रत हो देश का ऊँचा नाम कराएं ,
विश्व के मंच पर मिसाल बन भारत को महाशक्ति बनाएं !
मेरा सपना है कि भारत एक दिन विकसित देशों कि श्रेणी में आए ,
और एक बार फिर से सोने कि चिडियां कहलाए !

- सोनल * पंवार

Tuesday, April 21, 2009

विदाई

" विदाई "
क्या सुनाऊ मैं तुम्हें ये दास्ताँ अपनी ,

यह है मेरी जुबानी एक कहानी अपनी !
मैं एक कली थी ,
जो एक बाग़ में खिली थी !
मेरे चेहरे पर एक अधखिली मुस्कान थी ,
जिसकी गवाह ये धरती और ये फिजां थी !
बाग़ के माली ने बड़े प्यार से संवारा था मुझे ,
आंधी और तूफानों में संभाला था मुझे !
पल्लवन के बाद जब मैं फूल थी बनी ,
माली के चेहरे पर एक मुस्कान थी भली !
मेरा खिलना माली के प्रयासों का फल था ,
कुसुमित हुआ मेरा चेहरा , ये क्या कम था ?
लेकिन एक दिन वक्त की आंधी ने मेरे जीवन को ऐसा झकझोरा ,
मेरी कोमल-सी पंखुडियों को एक ही पल में बिखेरा !
वह दिन था मेरे जीवन का अन्तिम क्षण ,
जिसने छीन लिया मेरी उस मृदुल मुस्कान को !
उस दिन माली की आंखों में ऐसा मर्म था छाया ,
जैसे एक पिता ने अपनी बेटी को डोली में था बिठाया !
वह दिन था माली का कली से जुदाई का ,
वह दिन था एक कली की विदाई का !

- सोनल पंवार

Monday, April 20, 2009

" माँ एक अनमोल सौगात "

” माँ एक अनमोल सौगात ”

मेरे जीवन के बिखरे मोती की माला है माँ ,
मेरी आंखों के दर्पण की निर्मल ज्योति है माँ ,
तपती धूप में ममता की शीतल छाँव है माँ ,
दुःख के कटु क्षणों में एक मधुर मुस्कान है माँ ,
मेरे जीवन के इस गागर में प्यार का सागर है माँ ,
पिता है अगर नींव तो प्यार का संबल है माँ ,
त्याग और प्यार की सच्ची मूरत है माँ ,
इस दुनिया में भगवान की सबसे अनमोल सौगात है माँ !

- सोनल पंवार

Saturday, April 18, 2009

".......आतंकवाद क्यूँ .......?"

”……आतंकवाद क्यूँ ……? “
है आतंक-ही-आतंक फैला इस जहान में ,
है दर्द-ही-दर्द फैला इस जहान में !
आतंक जो फैला रहा वो भी एक इंसान है ,
आतंक के साए में जो पल रहा वो भी एक इंसान है ,
तो एक इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
कतरा-कतरा खून का है बिखरा हुआ यहाँ ,
हर शहर हादसों का शिकार हुआ यहाँ ,
आज़ाद हुआ ये देश आतंक का गुलाम क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
यहाँ मन्दिर,मस्जिद,गिरिजाघर और गुरुद्वारे में ,
चैन और अमन का पाठ पढ़ाती गीता,कुरान,बाइबिल है ,
तो धर्म और मज़हब के नाम पर उठती ये दीवार क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
आतंक की लपटों से दहला है ये जनजीवन सारा ,
आतंक के जलजले से बिखरा जग-संसार सारा ,
अपने ही वतन में हर वक्त इन आंखों में खौफ क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
लहू का है एक ही रंग हर इंसान का यहाँ ,
दर्द का एहसास है एक हर इंसान का यहाँ ,
तो अलग-अलग धर्मों में बंटता हर इंसान क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
आज़ादी की राह में न जाने कितने शहीद हुए ,
आतंक को मिटाने की कोशिश में कितने ही कुर्बान हुए ,
आज़ाद वतन की सरजमीं पर अब भी लाशों के ढेर क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
इस एक सवाल पर कई और सवाल है खड़े ,
इस जवाब की तलाश में कई नेता है अड़े ,
फिर भी हर जवाब उलझन से भरा क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
मेरे इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?…….
- सोनल पंवार