Saturday, July 25, 2009

' गीत '

“ गीत ”

ज़िंदगी एक गीत है ,
इसे प्यार से गुनगुना लो !
ग़मों के बादल भी छाए ,
तो ज़रा-सा मुस्कुरा लो !
साँसों की सरगम पे ,
एक नया गीत तुम बना लो !
अगर तुम्हें मिले न प्रीत कोई ,
तो इसे तुम मन का मीत बना लो !
ज़िंदगी के कोरे पन्नों पर ,
एक मधुर संगीत सजा लो !
आशा की किरणें बरसा कर ,
इसे तुम रोशनी से जगमगा लो !
अपने दामन में तुम ,
खुशियों का चमन बसा लो !
बेशकीमती है ये ज़िंदगी ,
इसे तुम गीतों से सजा लो !

- सोनल पंवार

Thursday, July 23, 2009

' माता-पिता'

[ “माता-पिता” कविता मेरी वो पहली कविता है , जिसे मैंने अपने पापा-मम्मी को उनकी marriage anniversary पर तोहफे के रूप में दी थी !आशा करती हूँ कि आप सभी को मेरी यह कविता अच्छी लगेगी ! ]

” माता-पिता ”

माता-पिता ,
ईश्वर की वो सौगात है ,
जो हमारे जीवन की अमृतधार है !
आपसे ही हमारी एक पहचान है ,
वरना हम तो इस दुनिया से अनजान थे !
आपके आदर्शों पर चलकर ही ,
हर मुश्किल का डटकर सामना करना सीखा है हमने !
आपने ही तो इस जीवन की दहलीज़ पर हमें ,
अंगुली थामे चलना और आगे बढ़ना सिखाया है ,
वरना एक कदम भी न चल पाने से हम हैरान थे !
आपके प्यार और विश्वास ने काबिल बनाया है हमें ,
जीवन के हर मोड पर आज़माया है हमें ,
वरना हम तो जीवन की कसौटियों से परेशान थे !
आपने हमेशा हर कदम पर सही राह दिखायी है हमें ,
अच्छे और बुरे की पहचान करायी है हमें !
आपने दिया है जीवन का ये नायाब तोहफा हमें ,
जिसे भुला पाना भी हमारे लिए मुश्किल है !
आपकी परवरिश ने ही दी है नेक राह हमें ,
वरना हम तो इस नेक राह के काबिल न थे !
आपसे ही हमारे जीवन की शुरुआत है ,
आपसे ही हमारी खुशियाँ और आबाद है ,
आप ही हमारे जीवन का आधार है ,
आप से हैं हम ,
और आप से ही ये सारा जहांन है !

- सोनल पंवार
(spsenoritasp@gmail.com)
(http://princhhi.blogspot.com)

Tuesday, July 14, 2009

' सावन '

' सावन '

बारिश कि बूंदों से ,
भीगा हुआ सावन है आया !
कलियों के चेहरों पर ,
खिलता हुआ यौवन है छाया !
नदियों और तालाबों में ,
उमंगों से भरा जीवन है आया !
घनघोर घटाएँ ऐसी है बरसी ,
इठलाता हुआ सावन है आया !
धरती की प्यास बुझाकर ,
ऐसा निर्मल जल है आया !
मेघों ने मल्हार जो छेडी ,
तो झूम-झूम कर सावन है आया !
बारिश की बूंदों से ,
भीगा हुआ सावन है आया !

- सोनल पंवार

( spsenoritasp@gmail.com )

( http://princhhi.blogspot.com )

Monday, July 13, 2009

' FATHER '

‘FATHER‘

F means that the First person who gives us million things.
A means Anxious for us.
T means that he Teaches us a lesson of truth & honesty.
H means that he Has good ideals.
E means that he Exhort us to make our good life.
R means Right & right he is always be.
Compile all these words and they will make
FATHER
A word that means love, blessings , ideals , sacrifice & devotion to us.

- Sonal Panwar

माँ का दिल

“ माँ का दिल “

माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?
कोमल-सी ममता
या प्यार का एक दरिया ,
ममता की छाँव
या प्यारी-सी एक दुनिया ,
स्नेह का भंडार
या एक मृदुल संसार ,
भोली-सी सूरत
या प्यार की एक मूरत ,
क्षमा का दर्पण
या फिर भगवान का एक वरदान !
माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?

– सोनल पंवार

Sunday, July 12, 2009

ज्ञानोदय

ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तब जाति, धर्म, ऊंच-नीच इन सबसे परे उस ईश्वर ने एक मनुष्य को उसका अस्तित्त्व दिया ! ये जाति, धर्म सब कुछ हमने बनाये है ! इसलिए मेरा ये मानना है कि केवल जप, चिंतन, ध्यान या साधना से ज्ञानोदय सम्भव नहीं है ! सही मायने में हमें ज्ञानोदय की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम आपस के राग-द्वेष, भेदभाव आदि को भूलकर ‘हम’ की भावना के साथ आगे बढ़े और एक सच्चे इंसान होने का आत्मबोध हमें सही राह दिखाएं ! तभी उस ईश्वर के आशीष से हमारा ज्ञानोदय सम्भव है ! यही मेरी इस कविता का आशय है !

” ज्ञानोदय “


जब आशा के दीप-सा प्रज्ज्वलित हो नया सवेरा ,
आतंक की काली छाया का न हो अनमिट अँधेरा ,
जीवन में हो सुख-दुःख के संगम का बसेरा ,
यहाँ मानव का मानव के प्रति प्यार हो गहरा ,
भ्रष्टाचार की नीति का अंत हो घनेरा ,
राग-द्वेष से उन्मुक्त हो मन और झूठ से चेहरा ,
बुराई पर हो अच्छाई की जीत का सेहरा ,
क्रिसमस, ईद, होली हो या हो दशहरा ,
हर त्यौहार में हो चारों तरफ खुशियों का डेरा ,
इंसानियत की यहाँ बहती हो निर्मल धारा ,
इस आत्मबोध से प्रकाशित हो जन संसार ये सारा ,
तब होगा सच्चा ज्ञानोदय ,
और मिलेगा ईश्वर का सानिध्य गहरा ,
उदीयमान होगा ये जीवन प्रखर ज्योति पुंज-सा ,
और बनेगा ये कल स्वर्णिम सुनहरा !

- सोनल पंवार

Friday, July 10, 2009

' स्वर्ग '

' स्वर्ग '

गर आसमां मुझे मिल जाए ,
तो इस जहाँ को मैं तारों से रोशन कर दूँ !
गर धरा मुझे मिल जाए ,
तो इस बंजर धरा को मैं गुलज़ार कर दूँ !
गर सागर की गहराई मुझे मिल जाए ,
तो मानव का मानव के प्रति प्यार गहरा कर दूँ !
गर पंछी की उड़ान मुझे मिल जाए ,
तो इस समाज को दासता की बेडियों से आज़ाद कर दूँ !
गर बरसात की फुहार मुझे मिल जाए ,
तो इस दुनिया में खुशियों की बौछार कर दूँ !
गर बर्फ की शीतलता मुझे मिल जाए ,
तो इस मानव मन को मैं शीतल कर दूँ !
गर ईश्वर की भक्ति मुझे मिल जाए ,
तो इस ब्रह्माण्ड को मैं भक्ति से पावन कर दूँ !
गर भगवान मुझे मिल जाए ,
तो इस धरती को मैं स्वर्ग-सी आबाद कर दूँ !

-सोनल पंवार

Wednesday, July 8, 2009

' प्रिंछी ' एक परी की कहानी

‘ प्रिंछी ‘ एक परी की कहानी

परियों की थी एक शहज़ादी ,
नाम था उसका ‘ प्रिंछी ‘ !
खुशियों का था आशियाना उसका ,
ग़मों से थी वो अनजानी !
खिलते फूलों-सी मुस्कान थी उसकी ,
महकती थी जिससे बगिया सुहानी !
हँसते-खेलते बीत रही थी उसकी ,
खुशियों से भरी ज़िंदगानी !

एक दिन अनजाने में ’ प्रिंछी ‘ ,
आसमां से इस धरती पर आई !
देख इस दुनिया की खुबसूरती ,
पहले तो वो अति हर्षाई ,
पर देख इंसान की दशा ,
उस परी की आँख भर आई !
भूखे-बेबस लोगों की
तृष्णा उसे रास ना आई !
दुःख से अनजान उस परी के मन में ,
एकदम मायूसी छाई !
उसने सोचा -
ये कैसी है दुनिया ,
जहाँ ऊंच-नीच की है खाई !
रिश्तों की उधेड़बुन में ,
यहाँ लड़ते है भाई-भाई !
ईर्ष्या-द्वेष की भावना यहाँ ,
इंसान के मन में है समाई !
धर्मं और मज़हब के नाम पर ,
यहाँ होती है बस लडाई !
मासूम गरीब बच्चों ने यहाँ ,
उतरन में हर खुशी है पाई !
ज़िन्दगी की हर खुशी पर इनकी ,
ग़मों की परछाई है छाई !
ये कैसी है दुनिया ,
ये कैसे है लोग ,
कैसी है ये पीर पराई ,
देख इस दुनिया की हालत ,
‘ प्रिंछी ‘ कुछ समझ ना पाई !

जब इंसानों की इस दुनिया से ,
परियों के देश वो लौट आई !
तब केवल एक ही बात ,
उसके मन में है आई !
काश, इंसानों की दुनिया भी ,
हम परियों-सी होती !
न होता ऊंच-नीच का भेद ,
न होता कोई जातिवाद ,
न होती भूख और बेबसी ,
न होता कोई विकार !
मर्म देख इस दुनिया का ,
उस नन्ही परी की आँख भर आई !
जो अब तक थी ग़मों से अनजानी ,
वो आज उसकी परिभाषा है जान पाई !

– सोनल पंवार

Friday, July 3, 2009

' बचपन की वो मीठी यादें '

“बचपन की वो मीठी यादें“

बचपन की वो मीठी यादें ,
वो नन्हीं-सी अठखेलियां ,
याद आती है बहुत ,
वो भोली-सी नादानियां !

वो माँ का आँचल और

पापा की अंगुली थामें ,
चलना, गिरना और फिर संभलना !
वो नन्हीं हथेलियों से अपने चेहरे को छुपाना ,
फिर उन्हीं हथेलियों से झांक कर मुस्कुराना !
वो टिमटिमाते तारों को पकड़ने की आस में
आसमान को एकटक यूँ ही तकते रहना ,
और न पाकर उन्हें मायूस-सा हो जाना !
वो नन्हें हाथों से मिट्टी का घरोंदा बनाना ,
और लहरों का उसे अपने संग बहा ले जाना ,
लेकिन फिर भी मिट्टी के नए घरोंदे बनाना !
वो बारिश की फुहारों से ख़ुद को भिगोना ,
और घर आकर माँ की डांट खाना ,
लेकिन अगले ही पल एक प्यारी-सी मुस्कान पर ,
माँ के गुस्से का गायब हो जाना !
वो नए-नए खिलौने लाना और
अपनी गुड़िया से बातें करना ,
वो आइसक्रीम और चॉकलेट की
अपने बड़ों से सिफारिश करना ,
वो इन्द्रधनुषी रंगों से
अपने घर की दीवारों को सजाना ,
वो तुतलाती हुई आवाज़ में
नई - नई कवितायें सुनाना ,
और सवालों की लम्बी लड़ियों में
सबको यूँ ही उलझाना !
वो भोली-सी सूरत बनाकर
अपनी हर ज़िद मनवाना !
वो मासूम निगाहों से
अनकही बात बताना !

बचपन की वो मीठी यादें ,

वो बीता हर लम्हा ,
याद आता है बहुत ,
जब होती हूँ तनहा !

काश, लौट आए बचपन के वो दिन ,

और भर दें मन में जीने की वही उमंग ,
ना कोई चिंता हो , ना कोई शिकन ,
जिंदगी में हो बस खुशियों की तरंग !

बचपन की वो मीठी यादें ……।


– सोनल पंवार