Monday, August 3, 2009

' सूनी कलाई '

" सूनी कलाई "

एक हसरत थी
कि मेरा एक भाई होता ,
जिसकी सूनी कलाई में
मेरा प्यार होता !
लेकिन हसरत
दिल की दिल में रह गई ,
उसकी सूनी कलाई भी
सूनी रह गई !

- सोनल पंवार

' सोनपरी और मुस्कान ' (A Fairytale)

” सोनपरी और मुस्कान ” (बाल कविता )

दूर कहीं एक गाँव में
रहती थी ‘ मुस्कान ‘ ,
माँ की थी वो राजदुलारी ,
और पिता की थी वो जान !
चिडियां-सी चहकती ,
फूलों-सी महकती ,
चेहरे पे उसके
सदा रहती थी मुस्कान !
दादी से अपनी वो
सुनती थी परियों की कहानियां !
नेकी और ईमानदारी का पाठ
सिखाती थी वो कहानियां !
ख्वाबों को हकीक़त के आशियाने से
सजाकर लुभाती वो कहानियां !
सुनकर परियों के देश की
वो अनगिनत कहानियां ,
नेकी और ख़ुशी मुस्कान की
बन गई थी पहचान !
कहानी सुनकर परियों की
सोचा करती थी मुस्कान ,
कि नेक राह पर जो है चलते ,
क्या परी उन्हें देती है उपहार ?
एक दिन यूँ ही सोचते हुए
एक घने जंगल में पहुंची मुस्कान ,
जहाँ था केवल सन्नाटा ,
और वहीँ पर था एक वृक्ष विशाल !
उसी वृक्ष कि टहनी से ऊपर
बनी हुई थी सीढियां कुछ ख़ास ,
जिन पर चलकर मुस्कान
पहुँची एक सुनहरे दरवाज़े के पास !
खुला जब वो दरवाज़ा ,
तब वो रह गई थी हैरान ,
दरवाज़े के उस पार
था परियों का देश ऐसा ,
रंग-बिरंगी थी वहां कि दुनिया ,
टिमटिमाते तारों-सी दुनिया !
न देखी, न सुनी थी कभी ,
ऐसी परियों-सी सुंदर वो दुनिया !
कलकल बहते हुए झरने ,
झरनों में खेलती वो नन्ही परियां ,
चोकलेट और आइसक्रीम से लदे पेड़ ,
रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियां !
परियों की इस दुनिया में ,
जाने कब खो गई मुस्कान !
तभी वहां परियों की राजकुमारी
‘ सोनपरी ‘ आई ,
मुस्कान को देख पहले वो मुस्कुराई ,
फिर पास आकर उसे
उपहारों की गठरी थमाई !
जब मुस्कान ने सोनपरी से
कारण था जानना चाहा,
तब सोनपरी ने बतलाया ,
जो करते है नेक काम ,
उन्हें मिलता है ये उपहार !
उपहार लेकर सोनपरी से ,
नींद से जाग उठी मुस्कान !
आँखे खुली मुस्कान की
तो माँ का दिया उपहार अपने पास पाया !
सपनों में जो थी सोनपरी ,
आँख खुलने पर उसने अपनी माँ को पाया !

– सोनल पंवार