Saturday, June 15, 2019

‘पिता’ Happy Father's Day

                ‘पिता’
अस्तित्त्व को हमारे
 जो एक नई पहचान दें
 वो नाम है पिता,
                ख़्वाहिशों को हमारी
                जो उन्मुक्त परवाज़ दें
                वो मनोबल है पिता,
पथरीली राहों को हमारी
जो बना दें गुलज़ार
वो बाग़बान है पिता,
                कठिन समय में हमारे
                बनकर साया जो दें साथ
                वो आसमान है पिता,
पास हो चाहे हो दूर हमसे
आशीष बन जो हर पल रहें साथ
वो परछाई है पिता,
                धैर्य, सहनशीलता,
                त्याग और आदर्श
                इन सभी गुणों की
                जो है सार्थक पहचान
                वो महान शख्सियत है ‘पिता’ ।



- सोनल पंवार





Saturday, June 14, 2014

' पिता '

   Happy Father's Day

             ' पिता '

जैसे किसी बगिया की फुलवारी का 
बाग़बान रखता है ध्यान ,
वैसे ही पिता के साये में 
बच्चों के होठों पर खिलती है मुस्कान !
पिता का साया है वो आसमान ,
जिससे मिलता है उन्हें खुशियों का जहान ,
बगिया के हर एक फूल-सा ,
महकता है उनका बचपन नादान !
बिना बाग़बान के जैसे सूना है ये चमन ,
बिन हवा के नीरव है ये गगन ,
वैसे ही बिना पिता के साये के ,
खामोश-सहमा है ये बचपन !

                    - सोनल पंवार

Friday, November 11, 2011

' मेरा बचपन '

' मेरा बचपन '

पापा की गोदी में
अठखेली करता वो बचपन ,
माँ के आँचल में
छुपता-इठलाता वो बचपन ,
आँखों में शरारत, ग़मों से अनजान ,
हँसता-मुस्कुराता वो बचपन ,
काश कोई लौटा दे ,
वो प्यारा-सा मेरा बचपन !

- सोनल पंवार

Friday, September 2, 2011

' सुनहरी शाम '

’ सुनहरी शाम ‘

बीते लम्हें,बीते पल,बीती बातें ,
एक दिन यूँ ही याद बन जाएगी !
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !

न होंगे पास अपने ,
न होंगे अनगिनत सपने ,
रिश्तों की तब न आहट होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !

न होगा ज़िन्दगी से कोई शिकवा ,
न होगी कोई शिकायत ,
वक़्त के हाथों मिलेगी सिर्फ बेबसी ,
न होगी ज़िन्दगी में कोई ज़रूरत ,
किस्मत से तब न कोई ज़िरह होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !

न मिलेगा साथ अपनों का ,
न मिलेगा प्यार अपनों का ,
रिश्तों के नाम पर केवल तन्हाई होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !

- सोनल पंवार

Friday, June 24, 2011

' आँखें '

“ आंखें “

रिश्तों में हो मिठास ,
तो आंखों में चमक आती है !
जब बिगड़ती है कोई बात ,
तो आंखों से छलक जाती है !
ये आंखें ही तो होती है मन का दर्पण ,
जिनसे मन की हर बात झलक जाती है !

– सोनल पंवार

Monday, June 20, 2011

' पिता '

' पिता '

हाथों को थाम कर जिनके
मैंने चलना है सीखा ,
गोदी में जिनके सुकून भरा
मेरा बचपन है बीता ,
विशाल हाथों में जिनके
समा जाती थी मेरी नन्हीं-सी मुट्ठी ,
उन ‘पिता’ की स्नेह भरी आँखों में
मैंने स्वयं ईश्वर को देखा !

- सोनल पंवार