सूर्य की किरणों-सा प्रकीर्णित ,
पावन धरती-सा सशक्त ,
बहते पानी-सा निर्मल ,
माँ की ममता-सा कोमल ,
मंदिर में बसे ईश्वर-सा दानी ,
खुशियों से भरे मन-सा धानी ,
सीपी में मोती-सा अनमोल ,
गागर में सागर-सा अपार ,
कभी है सख्त, कभी है संदल ,
हमारे लिए हमारे ' पापा ' का प्यार !
- सोनल पंवार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सोनल एक और अच्छी रचना, बधाई !
ReplyDeleteजब एक बूँद नूरकी,
ReplyDeleteभोलेसे चेहरे पे किसी,
धीरेसे है टपकती ,
दो पंखुडियाँ नाज़ुक-सी,
मुसकाती हैं होटोंकी,
वही तो कविता कहलाती!
Tumhen arpit hai ye adnaa-see rachnaa...ke mai naa to kavi hun, naa lekhika..!