Friday, June 19, 2009

' पिता '

फूलों का खिलना , खिलकर महकना ,
हवाओं का चलना , फिज़ाओं का रंग बदलना ,
चिड़ियों का चहकना , भंवरों का गुनगुनाना ,
सागर की लहरों का हवाओं के साथ हिलोरें खाना ,
जैसे ये सब देन है इस सृष्टि के परमपिता की ,
वैसे ही हमारी ज़िन्दगी , ज़िन्दगी का हर एक पल ,
हमारी खुशियाँ , हमारी मुस्कुराहट ,
ये सब देन है उस ' पिता ' की ,
जिसे रचा है सृष्टि के रचयिता 'परमपिता ' ने !

- सोनल पंवार

1 comment:

  1. सच है पिता तुल्य कोई नहीं होता इसीलिए वह परम पिता है, सुन्दर शब्द रचना.

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