' मेरा बचपन '
पापा की गोदी में
अठखेली करता वो बचपन ,
माँ के आँचल में
छुपता-इठलाता वो बचपन ,
आँखों में शरारत, ग़मों से अनजान ,
हँसता-मुस्कुराता वो बचपन ,
काश कोई लौटा दे ,
वो प्यारा-सा मेरा बचपन !
- सोनल पंवार
Friday, November 11, 2011
Friday, September 2, 2011
' सुनहरी शाम '
’ सुनहरी शाम ‘
बीते लम्हें,बीते पल,बीती बातें ,
एक दिन यूँ ही याद बन जाएगी !
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
न होंगे पास अपने ,
न होंगे अनगिनत सपने ,
रिश्तों की तब न आहट होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
न होगा ज़िन्दगी से कोई शिकवा ,
न होगी कोई शिकायत ,
वक़्त के हाथों मिलेगी सिर्फ बेबसी ,
न होगी ज़िन्दगी में कोई ज़रूरत ,
किस्मत से तब न कोई ज़िरह होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
न मिलेगा साथ अपनों का ,
न मिलेगा प्यार अपनों का ,
रिश्तों के नाम पर केवल तन्हाई होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
- सोनल पंवार
बीते लम्हें,बीते पल,बीती बातें ,
एक दिन यूँ ही याद बन जाएगी !
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
न होंगे पास अपने ,
न होंगे अनगिनत सपने ,
रिश्तों की तब न आहट होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
न होगा ज़िन्दगी से कोई शिकवा ,
न होगी कोई शिकायत ,
वक़्त के हाथों मिलेगी सिर्फ बेबसी ,
न होगी ज़िन्दगी में कोई ज़रूरत ,
किस्मत से तब न कोई ज़िरह होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
न मिलेगा साथ अपनों का ,
न मिलेगा प्यार अपनों का ,
रिश्तों के नाम पर केवल तन्हाई होगी ,
जीवन की ये सुनहरी शाम ,
एक दिन यूँ ही ढल जाएगी !
- सोनल पंवार
Friday, June 24, 2011
' आँखें '
“ आंखें “
रिश्तों में हो मिठास ,
तो आंखों में चमक आती है !
जब बिगड़ती है कोई बात ,
तो आंखों से छलक जाती है !
ये आंखें ही तो होती है मन का दर्पण ,
जिनसे मन की हर बात झलक जाती है !
– सोनल पंवार
रिश्तों में हो मिठास ,
तो आंखों में चमक आती है !
जब बिगड़ती है कोई बात ,
तो आंखों से छलक जाती है !
ये आंखें ही तो होती है मन का दर्पण ,
जिनसे मन की हर बात झलक जाती है !
– सोनल पंवार
Monday, June 20, 2011
' पिता '
' पिता '
हाथों को थाम कर जिनके
मैंने चलना है सीखा ,
गोदी में जिनके सुकून भरा
मेरा बचपन है बीता ,
विशाल हाथों में जिनके
समा जाती थी मेरी नन्हीं-सी मुट्ठी ,
उन ‘पिता’ की स्नेह भरी आँखों में
मैंने स्वयं ईश्वर को देखा !
- सोनल पंवार
हाथों को थाम कर जिनके
मैंने चलना है सीखा ,
गोदी में जिनके सुकून भरा
मेरा बचपन है बीता ,
विशाल हाथों में जिनके
समा जाती थी मेरी नन्हीं-सी मुट्ठी ,
उन ‘पिता’ की स्नेह भरी आँखों में
मैंने स्वयं ईश्वर को देखा !
- सोनल पंवार
‘ पिता – ईश्वर का वरदान ‘
‘ पिता – ईश्वर का वरदान ‘
‘पिता’
है ईश्वर का रूप ,
है पावन एक धूप ,
है स्नेह भरा संबल ,
है खुशियों का नभतल ,
है प्यार जिनका अमूल्य ,
है रिश्ता वो अतुल्य ,
है जिनसे मेरी पहचान ,
ईश्वर का वो है वरदान !
- सोनल पंवार
‘पिता’
है ईश्वर का रूप ,
है पावन एक धूप ,
है स्नेह भरा संबल ,
है खुशियों का नभतल ,
है प्यार जिनका अमूल्य ,
है रिश्ता वो अतुल्य ,
है जिनसे मेरी पहचान ,
ईश्वर का वो है वरदान !
- सोनल पंवार
Friday, February 4, 2011
' प्रण '
’ प्रण ‘
नित नए बनते हैं प्रण ,
और टूट जाते हैं प्रतिक्षण !
प्रण लेना तो है सरल ,
लेकिन उसे निभाना है मुश्किल !
हर रोज़ बनते-टूटते हैं ये प्रण ,
फिर भी हम लेते हैं ये प्रण !
प्रण लेना ही है तो
चलो हम मिलकर यह प्रण लें ,
प्रण लें किसी एक बच्चे को साक्षर करने का ,
प्रण लें किसी एक बुरी आदत को छोड़ने का ,
प्रण लें किसी एक गरीब की मदद करने का ,
प्रण लें किसी रोते हुए को हंसाने का ,
प्रण लें सबके बीच खुशियों को बाँटने का ,
प्रण लें इंसानों के बीच की नफरत मिटाने का ,
प्रण लें किसी एक बेसहारा को सहारा देने का ,
प्रण लें किसी पथभ्रष्ट को सही राह दिखाने का ,
प्रण लें अन्याय के प्रति विरोध प्रकट करने का ,
प्रण लें किसी एक अन्धविश्वास को मिटाने का ,
प्रण लें किसी भी बुराई को न अपनाने का ,
प्रण लें प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने का ,
और प्रण लें अपने इस प्रण को निभाने का !
ग़र अपने देश की एक अरब आबादी में से
हर कोई लेकर एक नया प्रण ,
पूरा करे यदि उसे लगन से ,
तो मिल जाएगा हमें चारों तरफ
सुख, समृद्धि और शांति का वातावरण ,
और मिल जाएगी अपने देश को
विश्व पटल पर एक नई पहचान !
– सोनल पंवार
नित नए बनते हैं प्रण ,
और टूट जाते हैं प्रतिक्षण !
प्रण लेना तो है सरल ,
लेकिन उसे निभाना है मुश्किल !
हर रोज़ बनते-टूटते हैं ये प्रण ,
फिर भी हम लेते हैं ये प्रण !
प्रण लेना ही है तो
चलो हम मिलकर यह प्रण लें ,
प्रण लें किसी एक बच्चे को साक्षर करने का ,
प्रण लें किसी एक बुरी आदत को छोड़ने का ,
प्रण लें किसी एक गरीब की मदद करने का ,
प्रण लें किसी रोते हुए को हंसाने का ,
प्रण लें सबके बीच खुशियों को बाँटने का ,
प्रण लें इंसानों के बीच की नफरत मिटाने का ,
प्रण लें किसी एक बेसहारा को सहारा देने का ,
प्रण लें किसी पथभ्रष्ट को सही राह दिखाने का ,
प्रण लें अन्याय के प्रति विरोध प्रकट करने का ,
प्रण लें किसी एक अन्धविश्वास को मिटाने का ,
प्रण लें किसी भी बुराई को न अपनाने का ,
प्रण लें प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने का ,
और प्रण लें अपने इस प्रण को निभाने का !
ग़र अपने देश की एक अरब आबादी में से
हर कोई लेकर एक नया प्रण ,
पूरा करे यदि उसे लगन से ,
तो मिल जाएगा हमें चारों तरफ
सुख, समृद्धि और शांति का वातावरण ,
और मिल जाएगी अपने देश को
विश्व पटल पर एक नई पहचान !
– सोनल पंवार
Tuesday, January 25, 2011
' यादें '
' यादें '
ज़िन्दगी के रंगीन पन्नों को
यादों की शबनम में भिगोना है मुझे ,
यादों के हर एक पल को
अपनी आँखों में संजोना है मुझे ,
बीत जाए ना ये ज़िन्दगी
वक़्त की आग़ोश में ,
वक़्त को हाथों में समेटकर
खुद को यादों के समंदर में डुबोना है मुझे !
- सोनल पंवार
ज़िन्दगी के रंगीन पन्नों को
यादों की शबनम में भिगोना है मुझे ,
यादों के हर एक पल को
अपनी आँखों में संजोना है मुझे ,
बीत जाए ना ये ज़िन्दगी
वक़्त की आग़ोश में ,
वक़्त को हाथों में समेटकर
खुद को यादों के समंदर में डुबोना है मुझे !
- सोनल पंवार
'माँ और पिता'
" माँ और पिता "
ईश्वर की बनाई ममता की मूरत है 'माँ' ,
ईश्वर ने गढ़ी वो अनमोल कृति है 'पिता' !
जीवन की तपती धूप में शीतल छाँव है 'माँ' ,
जीवन के अंधेरों में प्रदीप्त लौ है 'पिता' !
ज़िन्दगी के आशियाने का स्तंभ है 'माँ' ,
उस स्तंभ का आधार-नींव है 'पिता' !
मेरे जीवन का अस्तित्व है जिनसे ,
ईश्वर की वो अनमोल सौगात है - 'माँ और पिता' !
- सोनल पंवार
ईश्वर की बनाई ममता की मूरत है 'माँ' ,
ईश्वर ने गढ़ी वो अनमोल कृति है 'पिता' !
जीवन की तपती धूप में शीतल छाँव है 'माँ' ,
जीवन के अंधेरों में प्रदीप्त लौ है 'पिता' !
ज़िन्दगी के आशियाने का स्तंभ है 'माँ' ,
उस स्तंभ का आधार-नींव है 'पिता' !
मेरे जीवन का अस्तित्व है जिनसे ,
ईश्वर की वो अनमोल सौगात है - 'माँ और पिता' !
- सोनल पंवार
Subscribe to:
Posts (Atom)