Sunday, July 12, 2009

ज्ञानोदय

ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तब जाति, धर्म, ऊंच-नीच इन सबसे परे उस ईश्वर ने एक मनुष्य को उसका अस्तित्त्व दिया ! ये जाति, धर्म सब कुछ हमने बनाये है ! इसलिए मेरा ये मानना है कि केवल जप, चिंतन, ध्यान या साधना से ज्ञानोदय सम्भव नहीं है ! सही मायने में हमें ज्ञानोदय की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम आपस के राग-द्वेष, भेदभाव आदि को भूलकर ‘हम’ की भावना के साथ आगे बढ़े और एक सच्चे इंसान होने का आत्मबोध हमें सही राह दिखाएं ! तभी उस ईश्वर के आशीष से हमारा ज्ञानोदय सम्भव है ! यही मेरी इस कविता का आशय है !

” ज्ञानोदय “


जब आशा के दीप-सा प्रज्ज्वलित हो नया सवेरा ,
आतंक की काली छाया का न हो अनमिट अँधेरा ,
जीवन में हो सुख-दुःख के संगम का बसेरा ,
यहाँ मानव का मानव के प्रति प्यार हो गहरा ,
भ्रष्टाचार की नीति का अंत हो घनेरा ,
राग-द्वेष से उन्मुक्त हो मन और झूठ से चेहरा ,
बुराई पर हो अच्छाई की जीत का सेहरा ,
क्रिसमस, ईद, होली हो या हो दशहरा ,
हर त्यौहार में हो चारों तरफ खुशियों का डेरा ,
इंसानियत की यहाँ बहती हो निर्मल धारा ,
इस आत्मबोध से प्रकाशित हो जन संसार ये सारा ,
तब होगा सच्चा ज्ञानोदय ,
और मिलेगा ईश्वर का सानिध्य गहरा ,
उदीयमान होगा ये जीवन प्रखर ज्योति पुंज-सा ,
और बनेगा ये कल स्वर्णिम सुनहरा !

- सोनल पंवार

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