Wednesday, July 8, 2009

' प्रिंछी ' एक परी की कहानी

‘ प्रिंछी ‘ एक परी की कहानी

परियों की थी एक शहज़ादी ,
नाम था उसका ‘ प्रिंछी ‘ !
खुशियों का था आशियाना उसका ,
ग़मों से थी वो अनजानी !
खिलते फूलों-सी मुस्कान थी उसकी ,
महकती थी जिससे बगिया सुहानी !
हँसते-खेलते बीत रही थी उसकी ,
खुशियों से भरी ज़िंदगानी !

एक दिन अनजाने में ’ प्रिंछी ‘ ,
आसमां से इस धरती पर आई !
देख इस दुनिया की खुबसूरती ,
पहले तो वो अति हर्षाई ,
पर देख इंसान की दशा ,
उस परी की आँख भर आई !
भूखे-बेबस लोगों की
तृष्णा उसे रास ना आई !
दुःख से अनजान उस परी के मन में ,
एकदम मायूसी छाई !
उसने सोचा -
ये कैसी है दुनिया ,
जहाँ ऊंच-नीच की है खाई !
रिश्तों की उधेड़बुन में ,
यहाँ लड़ते है भाई-भाई !
ईर्ष्या-द्वेष की भावना यहाँ ,
इंसान के मन में है समाई !
धर्मं और मज़हब के नाम पर ,
यहाँ होती है बस लडाई !
मासूम गरीब बच्चों ने यहाँ ,
उतरन में हर खुशी है पाई !
ज़िन्दगी की हर खुशी पर इनकी ,
ग़मों की परछाई है छाई !
ये कैसी है दुनिया ,
ये कैसे है लोग ,
कैसी है ये पीर पराई ,
देख इस दुनिया की हालत ,
‘ प्रिंछी ‘ कुछ समझ ना पाई !

जब इंसानों की इस दुनिया से ,
परियों के देश वो लौट आई !
तब केवल एक ही बात ,
उसके मन में है आई !
काश, इंसानों की दुनिया भी ,
हम परियों-सी होती !
न होता ऊंच-नीच का भेद ,
न होता कोई जातिवाद ,
न होती भूख और बेबसी ,
न होता कोई विकार !
मर्म देख इस दुनिया का ,
उस नन्ही परी की आँख भर आई !
जो अब तक थी ग़मों से अनजानी ,
वो आज उसकी परिभाषा है जान पाई !

– सोनल पंवार

2 comments:

  1. क्या बात है!! बहुत गहन भावपूर्ण.

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  2. बहुत अच्छा लिखा है शब्दों में रवानी है या फिर मूड बनता जा रहा है

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