Saturday, August 14, 2010

”…….आतंकवाद क्यूँ …….? “

”……आतंकवाद क्यूँ …….? “

है आतंक-ही-आतंक फैला इस जहान में ,
है दर्द-ही-दर्द फैला इस जहान में !
आतंक जो फैला रहा वो भी एक इंसान है ,
आतंक के साए में जो पल रहा वो भी एक इंसान है ,
तो एक इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

कतरा-कतरा खून का है बिखरा हुआ यहाँ ,
हर शहर हादसों का शिकार हुआ यहाँ ,
आज़ाद हुआ ये देश आतंक का गुलाम क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

यहाँ मन्दिर,मस्जिद,गिरिजाघर और गुरुद्वारे में ,
चैन और अमन का पाठ पढ़ाती गीता,कुरान,बाइबिल है ,
तो धर्म और मज़हब के नाम पर उठती ये दीवार क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

आतंक की लपटों से दहला है ये जनजीवन सारा ,
आतंक के जलजले से बिखरा जग-संसार सारा ,
अपने ही वतन में हर वक्त इन आंखों में खौफ क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

लहू का है एक ही रंग हर इंसान का यहाँ ,
दर्द का एहसास है एक हर इंसान का यहाँ ,
तो अलग-अलग धर्मों में बंटता हर इंसान क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

आज़ादी की राह में न जाने कितने शहीद हुए ,
आतंक को मिटाने की कोशिश में कितने ही कुर्बान हुए ,
आज़ाद वतन की सरजमीं पर अब भी लाशों के ढेर क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

इस एक सवाल पर कई और सवाल है खड़े ,
इस जवाब की तलाश में कई नेता है अड़े ,
फिर भी हर जवाब उलझन से भरा क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
मेरे इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?……।

- सोनल पंवार

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