Monday, June 20, 2011

' पिता '

' पिता '

हाथों को थाम कर जिनके
मैंने चलना है सीखा ,
गोदी में जिनके सुकून भरा
मेरा बचपन है बीता ,
विशाल हाथों में जिनके
समा जाती थी मेरी नन्हीं-सी मुट्ठी ,
उन ‘पिता’ की स्नेह भरी आँखों में
मैंने स्वयं ईश्वर को देखा !

- सोनल पंवार







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