Sunday, June 21, 2009

पापा का प्यार

सूर्य की किरणों-सा प्रकीर्णित ,
पावन धरती-सा सशक्त ,
बहते पानी-सा निर्मल ,
माँ की ममता-सा कोमल ,
मंदिर में बसे ईश्वर-सा दानी ,
खुशियों से भरे मन-सा धानी ,
सीपी में मोती-सा अनमोल ,
गागर में सागर-सा अपार ,
कभी है सख्त, कभी है संदल ,
हमारे लिए हमारे ' पापा ' का प्यार !

- सोनल पंवार

2 comments:

  1. सोनल एक और अच्छी रचना, बधाई !

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  2. जब एक बूँद नूरकी,
    भोलेसे चेहरे पे किसी,
    धीरेसे है टपकती ,
    दो पंखुडियाँ नाज़ुक-सी,
    मुसकाती हैं होटोंकी,
    वही तो कविता कहलाती!

    Tumhen arpit hai ye adnaa-see rachnaa...ke mai naa to kavi hun, naa lekhika..!

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