Friday, June 24, 2011

' आँखें '

“ आंखें “

रिश्तों में हो मिठास ,
तो आंखों में चमक आती है !
जब बिगड़ती है कोई बात ,
तो आंखों से छलक जाती है !
ये आंखें ही तो होती है मन का दर्पण ,
जिनसे मन की हर बात झलक जाती है !

– सोनल पंवार

Monday, June 20, 2011

' पिता '

' पिता '

हाथों को थाम कर जिनके
मैंने चलना है सीखा ,
गोदी में जिनके सुकून भरा
मेरा बचपन है बीता ,
विशाल हाथों में जिनके
समा जाती थी मेरी नन्हीं-सी मुट्ठी ,
उन ‘पिता’ की स्नेह भरी आँखों में
मैंने स्वयं ईश्वर को देखा !

- सोनल पंवार







‘ पिता – ईश्वर का वरदान ‘

‘ पिता – ईश्वर का वरदान ‘

‘पिता’
है ईश्वर का रूप ,
है पावन एक धूप ,
है स्नेह भरा संबल ,
है खुशियों का नभतल ,
है प्यार जिनका अमूल्य ,
है रिश्ता वो अतुल्य ,
है जिनसे मेरी पहचान ,
ईश्वर का वो है वरदान !

- सोनल पंवार