Sunday, August 29, 2010

" मेरा देश ( तब से अब तक ) "

" मेरा देश ( तब से अब तक ) "

सोने की चिड़िया था कभी ,
उन्मुक्त हवाओं का था बसेरा ,
नारी की जहाँ होती थी पूजा ,
ऐसी पावन भूमि का देश था मेरा !

अंग्रेजों ने इस भूमि पर आकर ,
इस चिड़िया के पर थे काट डाले ,
फूट डालो-राज करो की नीति से ,
इस देश के हज़ारों टुकड़े कर डाले ,
गुलामी की जंजीरों में इसे जकड़ कर ,
आज़ाद सुबह के सपने चूर कर डाले !
तब उदय हुआ उन वीर-महात्माओं का ,
जिन्होंने आज़ादी के स्वप्न को साकार करने के लिए ,
कर दिए अपने प्राण न्यौछावर ,
जिनकी शहादत और कुर्बानी से ,
मिट गया गुलामी के अंधेरे का सागर !
१५ अगस्त , १९४७ का था वो दिन ,
जब मेरे देश को मिला था वो आज़ाद सवेरा !
लेकिन क्या हकीकत में था वो आज़ाद सवेरा ?

हम तन से तो आज़ाद हुए है ,
पर मन और विचारों से अब भी है गुलाम !
आज भी यहाँ जाति, धर्म, मज़हब के नाम पर
होते है दंगे-फसाद , मार-काट और लड़ाई ,
देश को खोखला करने वाली आतंकवाद की ये जड़े ,
इस देश की नींव में है समाई ,
भ्रष्टाचार में लिप्त है यहाँ हर कोई ,
अमीर-गरीब के बीच नित बढ़ रही है खाई !
दहेज़ और अत्याचारों से पीड़ित है यहाँ नारी ,
हर पल एक डर की छवि उसके मन में है समाई !
जिन मासूम निगाहों में पलते थे स्वप्न कई ,
उनमें पल रहा है आज अनजाना डर कहीं !
चारों तरफ हाहाकार है, खौफ है, आतंक है ,
ये कैसी है डर के साए में आज़ादी ?
क्या अब भी हम कहेंगे कि हम आज़ाद है ?

जब यहाँ मानवता , भाईचारा और सौहार्द्र होगा ,
जब नारी का यहाँ सम्मान होगा ,
जब यहाँ हर इंसान तन से ही नहीं
मन और विचारों से भी आज़ाद होगा ,
तब सही मायने में आज़ाद होगा 'मेरा देश' !

- सोनल पंवार

Saturday, August 14, 2010

”…….आतंकवाद क्यूँ …….? “

”……आतंकवाद क्यूँ …….? “

है आतंक-ही-आतंक फैला इस जहान में ,
है दर्द-ही-दर्द फैला इस जहान में !
आतंक जो फैला रहा वो भी एक इंसान है ,
आतंक के साए में जो पल रहा वो भी एक इंसान है ,
तो एक इंसान दूसरे इंसान का दुश्मन क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

कतरा-कतरा खून का है बिखरा हुआ यहाँ ,
हर शहर हादसों का शिकार हुआ यहाँ ,
आज़ाद हुआ ये देश आतंक का गुलाम क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

यहाँ मन्दिर,मस्जिद,गिरिजाघर और गुरुद्वारे में ,
चैन और अमन का पाठ पढ़ाती गीता,कुरान,बाइबिल है ,
तो धर्म और मज़हब के नाम पर उठती ये दीवार क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

आतंक की लपटों से दहला है ये जनजीवन सारा ,
आतंक के जलजले से बिखरा जग-संसार सारा ,
अपने ही वतन में हर वक्त इन आंखों में खौफ क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

लहू का है एक ही रंग हर इंसान का यहाँ ,
दर्द का एहसास है एक हर इंसान का यहाँ ,
तो अलग-अलग धर्मों में बंटता हर इंसान क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

आज़ादी की राह में न जाने कितने शहीद हुए ,
आतंक को मिटाने की कोशिश में कितने ही कुर्बान हुए ,
आज़ाद वतन की सरजमीं पर अब भी लाशों के ढेर क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?

इस एक सवाल पर कई और सवाल है खड़े ,
इस जवाब की तलाश में कई नेता है अड़े ,
फिर भी हर जवाब उलझन से भरा क्यूँ है ?
इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?
मेरे इस प्यारे-से जहान में ये आतंकवाद क्यूँ है ?……।

- सोनल पंवार