Sunday, June 21, 2009

पापा का प्यार

सूर्य की किरणों-सा प्रकीर्णित ,
पावन धरती-सा सशक्त ,
बहते पानी-सा निर्मल ,
माँ की ममता-सा कोमल ,
मंदिर में बसे ईश्वर-सा दानी ,
खुशियों से भरे मन-सा धानी ,
सीपी में मोती-सा अनमोल ,
गागर में सागर-सा अपार ,
कभी है सख्त, कभी है संदल ,
हमारे लिए हमारे ' पापा ' का प्यार !

- सोनल पंवार

Friday, June 19, 2009

' पिता '

फूलों का खिलना , खिलकर महकना ,
हवाओं का चलना , फिज़ाओं का रंग बदलना ,
चिड़ियों का चहकना , भंवरों का गुनगुनाना ,
सागर की लहरों का हवाओं के साथ हिलोरें खाना ,
जैसे ये सब देन है इस सृष्टि के परमपिता की ,
वैसे ही हमारी ज़िन्दगी , ज़िन्दगी का हर एक पल ,
हमारी खुशियाँ , हमारी मुस्कुराहट ,
ये सब देन है उस ' पिता ' की ,
जिसे रचा है सृष्टि के रचयिता 'परमपिता ' ने !

- सोनल पंवार